Tuesday, April 27, 2010

ब्राह्मण की समस्या और मेनेजमेंट का मंत्र

एक बार एक ब्राह्मण जिस का नाम सेवाराम था, बीरबल के पास गया और बोला मेरे पूर्वज प्रकांड पंडित और विद्वान् थे सभी लोग उन्हें पंडितजी बुलाते थे, मेरे पास पैसा नहीं है और ना ही मुझे इसकी चाहत है, पर मेरी एक ही इच्छा है, की लोग मुझे पंडित जी कह कर बुलाये। सेवाराम ने बीरबल से पूछा क्या ऐसा हो सकता है।
बीरबल मुस्कुराया और बोला यह तो बहुत आसान है, आज से जो भी तुम्हे पंडित जी बुलाये उसे तुम जोर से डाटो। वहा के बच्चे ब्राह्मण को पसंद नहीं करते थे क्योकि वह उन्हें डाटता था, बीरबल ने बच्चो से कहा सेवाराम को पंडित जी कहो तो वह चिडता है।
बस अब बच्चे उसे चिड़ाने के लिए पंडित जी बुलाते और बीरबल के कहे अनुसार ब्राह्मण उन्हें और जोर से डाटता।
बस फिर क्या था, धीरे धीरे ये नाम फैलता गया और लोग उसे पंडित जी बुलाने लगे। बाद में ब्राह्मण ने डाटना बंद कर दिया पर ये नाम उसके साथ ही चिपक गया।
मंत्र :
आप भी अफवाहों को आपके फायेदे के लिए भी इस्तेमाल कर सकते है, अफवाह फैलाने वाले कहानी के बच्चो की तरह हर जगह मौजूद है, आपके ऑफिस में, समाज में, हर जगह।
आप को पता होना चाहिए की कैसे उनसे फायदा उठाना है, देखिये कैसे फ़िल्मी हस्तिया या नेता, उनका इस्तेमाल हमेशा खबरों में रहने के लिए करते है.

Saturday, April 24, 2010

भगत सिंह केस के दस्तावेज़ भारत में

भगत सिंह

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे विवादास्पद और चर्चित मुक़दमे 'लाहौर षडयंत्र केस' के कोर्ट ट्रायल के दस्तावेज़ पहली बार भारत लाए गए हैं.
इस मुक़दमे के दस्तावेज़ की प्रति लाहौर हाईकोर्ट ने हरिद्वार स्थित गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय को सौंपी हैं.
क़रीब 2000 पन्ने के इस दुर्लभ दस्तावेज़ को विश्वविद्यालय के अतिविशिष्ट श्रद्धानंद संग्रहालय में रखा गया है.
उल्लेखनीय है कि आठ अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने विधानसभा में बम फेंकने के बाद खुद ही गिरफ्तारी दे दी थी. उनका मक़सद था अदालत को मंच बनाकर अपने क्रांतिकारी विचारों का प्रसार करना. बाद में जब ये पाया गया कि भगत सिंह ब्रिटिश पुलिस अधीक्षक जेपी साण्डर्स की हत्या में भी शामिल थे तो उन पर और उनके दो साथियों राजगुरू और सुखदेव पर देशद्रोह के साथ-साथ हत्या का भी मुक़द्दमा चला जो लाहौर षडयंत्र केस या भगत सिंह ट्रायल के नाम से इतिहास में विख्यात है.

इन दस्तावेज़ों में यह शामिल है कि मुक़दमों के दौरान भगत सिंह और उनके साथियों ने क्या कहा था.
इसके अनुसार भगत सिंह ने असेंबली में बम फेंकने के बाद जो पर्चे फेंके थे उसमें लिखा था, “किसी आदमी को मारा जा सकता है लेकिन विचार को नहीं.”
भगत सिंह ने 'बड़े साम्राज्यों का पतन हो जाता है लेकिन.विचार हमेशा जीवित रहते हैं' और 'बहरे हो चुके लोगों को सुनाने के लिये ऊंची आवाज जरूरी है' जैसी बातें भी पर्चों में लिखी थीं.
इतिहासकार कहते हैं कि इसी घटना के बाद उन पर देशद्रोह का मुकद्दमा चला जिसने एकबारगी पूरे ब्रिटिश राज को थर्रा दिया था और देश भर में जन-आक्रोश उमड़ पड़ा था. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर स्वतंत्र कुमार इन दस्तावेज़ों को भारत लाए जाने को बड़ी उपलब्धि मानते हैं. वे कहते हैं, "हमारे लिये ये गर्व की बात है. विश्वविद्यालय की स्थापना गुजरांवला में ही हुई थी जो अब पाकिस्तान में है. मैं पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश के निमंत्रण पर लाहौर गया हुआ था. वहां उन्होंने वो कक्ष और रिकॉर्ड दिखाए जो इस मुकद्दमे से जुड़े हुए थे. मैंने इसकी एक प्रति के लिये अनुरोध किया और मुझे खुशी है कि पाकिस्तान हाईकोर्ट ने इसे स्वीकार कर लिया.”
वो कहते हैं, “कई बार आदमी काम करता है और उसे अंजाम पता नहीं होता लेकिन इन तीन युवकों का जज़्बा देखकर लगता है कि उन्होंने अंजाम ही सबसे आगे रखा और फाँसी के लिये ही तैयारी की.”
पाँच मई 1930 को शुरू हुआ ये मुक़द्दमा 11 सितंबर 1930 तक चला था.
इतिहासकार कहते हैं कि ये मुकद्दमा इसलिये भी अभूतपर्व था क्योंकि इसमें क़ानूनी न्याय तो दूर की बात न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत को भी तिलांजलि दे दी गई थी जिसके तहत हर अभियुक्त को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाता है.
संग्रहालय के निदेशक कहते हैं कि इससे भगत सिंह पर शोध करने वालों को मदद मिलेगी
वे बताते हैं कि सरकार ने एक अध्यादेश निकालकर ऐसे अधिकार हासिल कर लिये जिसकी मदद से वो गवाही के सामान्य नियमों और अपील के अधिकार के बिना भगतसिंह और उनके साथियों पर मुकद्दमा चला सकती थी.
तमाम विरोधी स्वरों और गांधीजी के आग्रह के बावजूद 23 मार्च 1931 को तीनों को फांसी पर लटका दिया गया.
इन दस्तावेज़ों में पुलिस अधिकारियों का पक्ष और जजों की टिप्पणियों के साथ अदालत की हर कार्यवाही का विस्तार से वर्णन है. जजों का फ़ैसला सहित पूरी कार्यवाही फारसी में लिखी गई है हालांकि नाम अंग्रेजी में लिखे हुए हैं.
संग्रहालय के निदेशक डॉ. प्रभात कहते हैं, "भगत सिंह की विचारधारा को लेकर कई धारणाएँ और मान्यताएँ है और उनके अध्ययन में ये दस्तावेज़ काफ़ी उपयोगी होगा."
(उपरोक्त लेख बीबीसी की हिंदी वेबसाइट से लिया गया है)

Monday, April 12, 2010

महात्मा गाँधी का चंगेस खान कनेक्शन

एक बार हम से बोले हमारे परम मित्र पंडित प्यारे लाल..
कम्पुटर का बटन दबाओ, जो चाहते हो सब पाओ...
हमने आव न देखा ताव, कम्पुटर का बटन दबाया और पूछा भाया
महात्मा गाँधी के बारे में क्या जानते हो ?
कम्पुटर बोला वे बड़े खूंखार थे, नाश्ते में ३० अंडे और ५ मुर्गिया खाते थे
तलवारबजी के उस्ताद थे, पूरी दुनिया पर अपनी हुकूमत चलाते थे,
हम बोले भैया गजब मत ढहाओ, महात्मा गाँधी के नाम पर कलंक मत लगाओ
तो कंप्यूटर बोला भैया आप भी महात्मा गाँधी की जगह चंगेस खान का बटन मत दबाओ.

Sunday, April 11, 2010

आज शहर से उनके फिर एक मुसाफिर आया

सोये हुए जज्बात को, किस्मत ने यूँ जगाया 
आज शहर से उनके फिर, एक मुसाफिर आया

उसके कपड़ो पर लगी धुल भी, उस शहर का हिस्सा थी
जिस ओर जाने को हमने, हर नुस्खा आजमाया

कितनी खुशनसीब है ये आखे, जो देखती है हर रोज़ उन्हें
तडपे इसकदर हम की अब इस बुत से, डरता है खुद ही का साया

सोचता हु क्या वहा, कलियाअभी भी खिलाती है
यहाँ तो उनके बगैर, हर पत्ता मुरझाया

जी में आया की एक बार छु लू उस मुसाफिर को
शायद इस तरह हमने, अपना सन्देश उन तक पहुचाया

Saturday, April 10, 2010

जानवर का पिंजरा या पिंजरे का जानवर


विषय पड़कर कही हैरान तो नहीं हो गए... जी जनाब बिलकुल ठीक लिखा है, जानवर तो जंगलो की शान है, चाहे वो जंगल का राजा बाघ हो या कूदते-फुदकते चीतल | क्या फबते है जब अपने इलाके में चहलकदमी करते है, जैसे हम इंसानों से कह रहे हो की देखो तुम क्या जानो शान क्या होती है, जहा मन किया वहा चले गए, कभी मन किया तो पानी में डुबकी लगा ली और कभी मन किया तो डगाल फांद के किसी पेड़ के निचे तान के सो लिए, यहाँ सब अपने दोस्त है.... हा.. थोडा डर रहता है की कही कोई बड़ा जानवर शिकार ना कर ले पर वो तो एक हिस्सा है इस जिंदगी का, आखिर हर किसी से ताकतवर कोई कोई तो होता ही है, और ताकतवर तो आपको हमेशा दबाने की कोशिश करते ही है, चाहे वो जानवर हो या आप जैसे इंसान | लेकिन फिर ये जानवर प्राणी संग्रहालय ( zoo ) में क्या कर रहा है, कैसा सुस्त सा दिख रहा है, लगता है अभी अभी अपनी आज़ादी खो के यहाँ आया है, शायद अपने दोस्तों को मिस कर रहा है, और ये क्या इसके पिंजरे की दिवार तो शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो गई... क्यों भाई चीतल क्या हुआ...? उस दिन तो जंगल में बड़ी बड़ी बाते कर रहे थे बड़ी डींगे हांक रहे थे की मेरी शान देखो... अब तो खाने के लिए भी कोई और खिलायेगा तो ही खा पाओगे और जाओगे कहा यही रहना है तो अब आदत डाल ही लो, और जब कोई तुम्हे देखने आये और तुम्हे टुन्गाये तो ज्यादा नाराज़ मत होना बस तरस खाना अपनी ज़िन्दगी पर, और हा तुम्हारे शारीर की ये चमक चली जाये तो हैरान मत होना, और तुम्हे मै एक बात बताता हु यहाँ के कई जानवरों का तो जन्म ही पिंजरे में हुआ है, उन्हें तो तुम्हारी तरह मौका ही नहीं मिला कभी जंगल की शान देखने का... तुम्हारे लिए तो ये जानवरों का पिंजरा है पर वो तो पिंजरे के ही जानवर है. हैना.......

Thursday, April 8, 2010

एक भारतीय कभी आतंकवादी नहीं हो सकता, क्यों ??


एक भारतीय कभी आतंकवादी नहीं हो सकता क्योकि

1. हम हमेशा लेट होते है, हम उस प्लेन को ही मिस कर देंगे जिसे हमें किडनेप करना है.
2. प्लेन के फ्री खाने और ड्रिंक में हम भूल ही जायेंगे की हम यहाँ क्यों आये है.
3. हम airhotess के साथ फोटो खीचवाने के लिए आपस में ही लड़ लेंगे.
4. हम कभी कोई सीक्रेट नहीं रख सकते, हम हफ्ते भर पहले ही सबको मिशन के बारे में बता देंगे.
5. हम हमेशा अपने ट्रेनिंग कैंप मिस करेंगे और कभी अटैंड भी किया तो पूरा ध्यान बिच के लंच ब्रेक में खाने पर रहेगा.
6. हम हमेशा जोर से बात कर कर सबका ध्यान अपनी ओर खीच लेते है.
7. क्रिकेट मैच की वजह से हम मिशन को कभी भी आगे के लिए स्थगित कर सकते है.
8. हम अपनी ए के ४७ को सेकंड हैण्ड मार्केट में थोड़े से प्रोफिट के लिए बेच देंगे.
9. हैण्ड ग्रानेड से बारूद निकल कर बच्चो के लिए दिवाली के फटाके बना लेंगे.
10. हमारा पूरा ध्यान मिशन की बजाये अपने ग्रुप का लीडर बनने पर रहेगा.

Tuesday, April 6, 2010

खजूर और बबुल में अंतर

हम सब ने बचपन से पड़ा है...
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर, पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर!!

इसी विषय में प्रवीण त्रिवेदी ने गूगल बज्ज़ पर लिखा है
-
टिमटिमाते ही सही...
देखो दिए जलते तो है...!!
लड़खड़ाते ही सही...
हर कदम चलते तो है...!!
हम खजूरों से भी सीखे पेड़ की अच्छाइयां
न सही, न दे वे छाया...
कम से कम फलते तो हैं...!!


तो मेरे भी खुरापाती मन में रचनात्मकता का बुलबुला फुट पड़ा और मैंने भी कुछ लिख दिया

छोटा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ बबूल |
फल तो लागत नहीं, लागे वो भी शूल ||

अब जो लोग बड़ो को चिड़ाने के लिए ऊपर दी पंक्तियों का इस्तेमाल करते थे उसके जवाब में बड़े भी कुछ कह सकते है ... जो लोग अभी तक इस समस्या से ग्रस्त थे (यहाँ ये बताना प्रासंगिक होगा की मेरी लम्बाई ६ फिट है) अपना धन्यवाद मुझे कमेन्ट के रूप में दे सकते है..... :-)

Saturday, April 3, 2010

आर डी बर्मन एवं गुलज़ार की जुगलबंदी

गुलज़ार साहब और पंचम दा, दोनों की अपनी एक शख्सियत है, एक किस्म की रूमानियत है, जो जुदा होने पर अलग है पर साथ होने पर कई झरोखे खोलती है. कई बार पता नहीं चलता लेकिन कुछ लोगो की मौजूदगी आपकी शअख्सियत को एक नई पहचान देती है, एक vibration जो आप से ऐसे मुक्तलिफ़ काम करवाती है जो आपके जेहन में भी न हो. चंद मोती पेश है आपके लिए... वक़्त निकाल कर सुनिए जरुर

- इजाज़त सुने
कतरा कतरा बहती है कतरा कतरा बहने दो जिंदगी है
छोटी सी कहानी से बारिशो के पानी से

- नमकीन सुने
फिर से अइयो बदरा बिदेसी
राह पर चलते है यादो पर सफ़र करते है

- थोड़ी सी बेवफाई सुने
हजार राहे मूड के देखि कही से कोई सदा ना आई

- परिचय सुने
मुसाफिर हु यारो ना घर है ना ठिकाना

- आंधी सुने
तुम आ गए हो नूर आ गया है
तेरे बिना जिंदगी से शिकवा तो नहीं
इस मोड़ से जाते है

- लिबास सुने
खामोश सा अफसाना पानी से लिखा होता
सिली हवा छु गई, गिला बदन जल गया

- मासूम सुने
तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हु मई
हुजूर इस कदर भी ना इतरा के चलिए
दो नैना एक कहानी, थोडा सा आंसु थोडा सा पानी

- खुशबु सुने
ओह मांझी रे
बेचारा दिल क्या करे

- किनारा सुने
नाम ग़ुम जायेगा
जाने क्या सोच कर नहीं गुजरा

घर सुने
आपकी आँखों में कुछ महके हुए से ख्वाब है
फिर वही रात है
आजकल पाव जमी पर नहीं पड़ते मेरे

सितारा सुने
ये साये है ये दुनिया है
थोड़ी सी ज़मीन थोडा आसमान