Wednesday, March 31, 2010

wild... inside me



बाहर से में एक सभ्य व्यक्ति हूँ, सबकी तरह शराफत से उठता बैठता हूँ, दुसरो के पुरे सम्मान का ख्याल रखता हूँ एवं वैसा ही व्यवहार करता हूँ, जिसकी उम्मीद वो मुझसे लगाये बैठे है, जैसे नकली मुस्कराना, लोगो की हाँ में हाँ मिलाना... बड़ो का सम्मान चाहे वो कितनी ही मूर्खतापूर्ण बाते करते हो, ऑफिस में सहकर्मियों के साथ औपचारिकता के सारे नियमो का पालन... पर पर पर..... कभी कभी मै चौक जाता हु... मेरे खुद के वाइल्ड पार्ट से.... जो चीखना चाहता है... सारे नियमो की धज्जिया उड़ना चाहता है, जो vodka पी कर झूमना चाहता है, किसी तेज गाने पर जबरदस्त नाचना चाहता है, बंजी जम्पिंग करना चाहता है, सारे लोगो को उनकी असलियत बताना चाहता है, समुद्र में गोते लगाना चाहता है..... बच्चो की तरह मासूम होना चाहता है, जिस व्यक्ति से मेरा मन करे, बस जा कर उससे बात करना चाहता है, छोटे बड़े के, स्त्री पुरुष के, जिनिअस और बेवकूफ के, सुन्दर और भद्दे के, employer और employee के सारे अंतर को भूल जाना चाहता है.
मुमकिन होते हुए भी.. क्यों मै नहीं कर पता ये सब, क्या मै डरता हु... क्या मै असुरक्षित महसूस करता हूँ या अपने खुद के दायरे बना लिए है मैंने.... हा शायद यही है.... मैं इन दायरों को तोड़ देना चाहता हूँ, बाहर निकल जाना चाहता हु खुद के comfort zone से.... और देखना चाहता हूँ, महसूस करना चाहता हु the wild inside me....

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