सोये हुए जज्बात को, किस्मत ने यूँ जगाया
आज शहर से उनके फिर, एक मुसाफिर आया
उसके कपड़ो पर लगी धुल भी, उस शहर का हिस्सा थी
जिस ओर जाने को हमने, हर नुस्खा आजमाया
कितनी खुशनसीब है ये आखे, जो देखती है हर रोज़ उन्हें
तडपे इसकदर हम की अब इस बुत से, डरता है खुद ही का साया
सोचता हु क्या वहा, कलियाअभी भी खिलाती है
यहाँ तो उनके बगैर, हर पत्ता मुरझाया
जी में आया की एक बार छु लू उस मुसाफिर को
शायद इस तरह हमने, अपना सन्देश उन तक पहुचाया
Showing posts with label कविता. Show all posts
Showing posts with label कविता. Show all posts
Sunday, April 11, 2010
Tuesday, April 6, 2010
खजूर और बबुल में अंतर
हम सब ने बचपन से पड़ा है...
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर, पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर!!
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर, पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर!!
इसी विषय में प्रवीण त्रिवेदी ने गूगल बज्ज़ पर लिखा है
- टिमटिमाते ही सही...
देखो दिए जलते तो है...!!
लड़खड़ाते ही सही...
हर कदम चलते तो है...!!
हम खजूरों से भी सीखे पेड़ की अच्छाइयां
न सही, न दे वे छाया...
कम से कम फलते तो हैं...!!
तो मेरे भी खुरापाती मन में रचनात्मकता का बुलबुला फुट पड़ा और मैंने भी कुछ लिख दिया
छोटा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ बबूल |
फल तो लागत नहीं, लागे वो भी शूल ||
अब जो लोग बड़ो को चिड़ाने के लिए ऊपर दी पंक्तियों का इस्तेमाल करते थे उसके जवाब में बड़े भी कुछ कह सकते है ... जो लोग अभी तक इस समस्या से ग्रस्त थे (यहाँ ये बताना प्रासंगिक होगा की मेरी लम्बाई ६ फिट है) अपना धन्यवाद मुझे कमेन्ट के रूप में दे सकते है..... :-)
फल तो लागत नहीं, लागे वो भी शूल ||
अब जो लोग बड़ो को चिड़ाने के लिए ऊपर दी पंक्तियों का इस्तेमाल करते थे उसके जवाब में बड़े भी कुछ कह सकते है ... जो लोग अभी तक इस समस्या से ग्रस्त थे (यहाँ ये बताना प्रासंगिक होगा की मेरी लम्बाई ६ फिट है) अपना धन्यवाद मुझे कमेन्ट के रूप में दे सकते है..... :-)
Subscribe to:
Posts (Atom)