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Wednesday, March 31, 2010
नरेन्द्र मोदी की ठाकरे चाल
गुजरात के गिर जंगल आज एशिआइ सिंह की आखरी शरण स्थली है, ऐसे में अगर कोई महामारी गिर पर आती है तो सारे सिंहो का अस्तित्व एक ही झटके में खत्म हो सकता है ऐसे में भारतीय वन्य अनुसन्धान केंद्र एवं WWF की बहोत ही महत्वकांक्षी योजना है, गुजरात के सिंहो का मध्य प्रदेश के कुनो पालपुर जंगलो में पुनर्स्थापन. कुनो पालपुर शिवपुरी जिले में सिंहो का एतिहासिक बसेरा रहा है, जो आज सिंहो के पुनर्स्थापन के लिए सबसे उपयुक्त पाया गया है, इसे नेशनल पार्क घोषित कर दिया गया है एवं यहाँ के गाँवो को भी दूसरी जगह विस्थापित कर दिया गया है. यह अब सिंहो के लिए पूरी तरह से तैयार है. ऐसे में गुजरात की सरकार ने गिर से सिंहो के जोड़े देने से मना कर दिया है, उन्हें ये डर है की गिर जो अभी सिंहो को देखने के लिए एकमात्र पर्यटन केंद्र है, उसका अधिपत्य समाप्त हो जायेगा. नरेन्द्र मोदी की गुजरात की सरकार देशहित में ना सोचते हुए सिर्फ राज्य हित में सोच रही है, जैसा राज ठाकरे एवं शिव सेना मुंबई और महाराष्ट्र के बारे में सोचते है.
मेरा आप से प्रश्न है की क्या यह गुजरात सरकार का सुक्ष्म दृष्टिकोण नहीं है एवं अगर यह जायज है, तो फिर हम सिर्फ राज ठाकरे और शिव सेना पर क्यों उंगली उठाये?
Tuesday, March 30, 2010
शेयर मार्केट... क्यों जरुरी है ?
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में एक स्वतंत्र शेयर मार्केट बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. एक आम आदमी तो आज भी शेयर मार्केट को सट्टा बाज़ार ही समझता है. कई लोगो ने इसमें पैसे खोये भी होंगे, पर क्या आपने सोचा की शेयर मार्केट क्यों होता है, इसका क्या महत्व है, और आप कैसे इसमें अपना योगदान दे कर न सिर्फ अपनी बचत का बेहतर इन्वेस्टमेंट जरिया पा रहे है बल्कि आप देश की अर्थव्यवस्था में भी सहयोग कर रहे है, कैसे ??
आइये पहले हम इसे मूल रूप से समझते है, शेयर क्या है ?
जब कोई कंपनी अपना व्यवसाय आरंभ करती है, तो उसे पूंजी चाहिए. इसके तीन तरीके है पहला स्वपुंजी, दूसरा बैंक तीसरा आम आदमी से सहयोग जिसे हम शेयर कहते है, पहला और दूसरा तरीका तो सबकी समझ में आता है लेकिन कोई आम आदमी क्यों किसी कंपनी में अपनी कमाई लगाएगा ? पहला तो कंपनी उसे अपने लाभ में हिस्सेदारी देती है, अगर कंपनी ने अच्छा व्यवसाय किया तो वह उस लाभ का अंश अपने शेयरहोल्डर्स को लाभांश (डिविडेंड) के रूप में देती है.
कंपनी अपने शेयर आम लोगो को बेचने के लिए IPO लाती है जो की निश्चित शेयर के लिए होता है, अगर लोगो को लगता है की कंपनी आगे चल कर अच्छा मुनाफा कमाएगी, तो लोग उसके शेयर खरीदेंगे. अब IPO बंद होने के बाद जो लोग शेयर नहीं खरीद पाए वो क्या करेंगे क्योंकी उन्हें लगता है की ये कंपनी आगे चल कर अच्छा करेगी, तो वो लोग ज्यादा दाम दे कर उनलोगों के शेयर खरीद सकते है, जिन्हें IPO में शेयर मिले है, इस खरीदी बिक्री को नियंत्रित करने के लिए ही शेयर मार्केट होते है जैसे भारत में NSE, BSE है.
अब आप समझे की जितना ज्यादा लोग खरीदी बिक्री करेंगे उतना कंपनी के लिए पूंजी जुटाना आसान होगा, क्योकि बैंक और स्वपुंजी की अपनी एक सीमा है, इस तरह से कंपनी अपने व्यवसाय को बड़ा सकती है, इससे देश की कमाई भी बढेगी, लोगो को रोजगार भी मिलेगा और देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी.
इस व्यवस्था का कंपनी गलत फायदा न उठाये इसीलिए देश में SEBI जैसी रेगुलेटरी ऑथोरिटी होती है, जो यह निश्चित करती है की आप का पैसा सुरक्षित रहे एवं सही तरीके से इस्तेमाल हो.
अब आप किस तरह से मुनाफा कमा सकते है, तो एक ही तरीका है, आप यह अनुमान लगा कर इन्वेस्ट करे की उस कंपनी का भविष्य कैसा है, क्योकि जितना अच्छा उस कम्पनी का लाभ होगा उतना उसके शेयर की मांग होगी एवं जीतनी मांग होगी उतना ही उसका मार्केट रेट ज्यादा होगा. और हां कंपनी को अपना business करने के लिए आप को टाइम तो देना पड़ेगा ना इसीलिए सब्र जरुर रखिये.. अगर आप इस मुलभुत सिधांत को समझ गए तो आपको कभी सेंसेक्स और निफ्टी के बड़ने और घटने से फरक नहीं पड़ेगा.. और आप निश्चित ही मुनाफे में रहेंगे.
आइये पहले हम इसे मूल रूप से समझते है, शेयर क्या है ?
जब कोई कंपनी अपना व्यवसाय आरंभ करती है, तो उसे पूंजी चाहिए. इसके तीन तरीके है पहला स्वपुंजी, दूसरा बैंक तीसरा आम आदमी से सहयोग जिसे हम शेयर कहते है, पहला और दूसरा तरीका तो सबकी समझ में आता है लेकिन कोई आम आदमी क्यों किसी कंपनी में अपनी कमाई लगाएगा ? पहला तो कंपनी उसे अपने लाभ में हिस्सेदारी देती है, अगर कंपनी ने अच्छा व्यवसाय किया तो वह उस लाभ का अंश अपने शेयरहोल्डर्स को लाभांश (डिविडेंड) के रूप में देती है.
कंपनी अपने शेयर आम लोगो को बेचने के लिए IPO लाती है जो की निश्चित शेयर के लिए होता है, अगर लोगो को लगता है की कंपनी आगे चल कर अच्छा मुनाफा कमाएगी, तो लोग उसके शेयर खरीदेंगे. अब IPO बंद होने के बाद जो लोग शेयर नहीं खरीद पाए वो क्या करेंगे क्योंकी उन्हें लगता है की ये कंपनी आगे चल कर अच्छा करेगी, तो वो लोग ज्यादा दाम दे कर उनलोगों के शेयर खरीद सकते है, जिन्हें IPO में शेयर मिले है, इस खरीदी बिक्री को नियंत्रित करने के लिए ही शेयर मार्केट होते है जैसे भारत में NSE, BSE है.
अब आप समझे की जितना ज्यादा लोग खरीदी बिक्री करेंगे उतना कंपनी के लिए पूंजी जुटाना आसान होगा, क्योकि बैंक और स्वपुंजी की अपनी एक सीमा है, इस तरह से कंपनी अपने व्यवसाय को बड़ा सकती है, इससे देश की कमाई भी बढेगी, लोगो को रोजगार भी मिलेगा और देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी.
इस व्यवस्था का कंपनी गलत फायदा न उठाये इसीलिए देश में SEBI जैसी रेगुलेटरी ऑथोरिटी होती है, जो यह निश्चित करती है की आप का पैसा सुरक्षित रहे एवं सही तरीके से इस्तेमाल हो.
अब आप किस तरह से मुनाफा कमा सकते है, तो एक ही तरीका है, आप यह अनुमान लगा कर इन्वेस्ट करे की उस कंपनी का भविष्य कैसा है, क्योकि जितना अच्छा उस कम्पनी का लाभ होगा उतना उसके शेयर की मांग होगी एवं जीतनी मांग होगी उतना ही उसका मार्केट रेट ज्यादा होगा. और हां कंपनी को अपना business करने के लिए आप को टाइम तो देना पड़ेगा ना इसीलिए सब्र जरुर रखिये.. अगर आप इस मुलभुत सिधांत को समझ गए तो आपको कभी सेंसेक्स और निफ्टी के बड़ने और घटने से फरक नहीं पड़ेगा.. और आप निश्चित ही मुनाफे में रहेंगे.
Monday, March 29, 2010
नई पहल
आज दैनिक भास्कर के रविवारीय संस्करण में एक लेख पड़ा, जान कर हैरानी हुइ की, आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस वीवी राव ने न्यायपालिका में ई-गवर्नेस को लेकर पढ़े गए अपने पर्चे में जब यह धमाका किया कि देश के सभी छोटे-बड़े न्यायालयों में लगभग 3 करोड़ 12 लाख 8 हज़ार मामले लंबित पड़े हैं, तो सबके कान खड़े होना लाजिमी था।
राव ने यह आशंका भी ज़ाहिर की है कि जजों के मौजूदा संख्याबल के हिसाब से इन मामलों को निबटाने में भारतीय न्याय व्यवस्था को 320 वर्ष लग जाएंगे! इधर तीन माह के भीतर लंबित मामलों की सूची में 14 लाख प्रकरणों का इजाफ़ा हो गया है। आश्चर्य होता है ना .... अब आप ही बताइए जब न्याय व्यवस्था इतनी लाचार हो, तो उसका फायदा तो सभी उठाएंगे चाहे हमारे यहाँ के छुटभैये नेता हो या आतंकवाद के नए अवतार।
दिल्ली हाईकोर्ट की पिछली सालाना रपट कहती है कि यूपी का इलाहाबाद हाईकोर्ट अगर साल के 365 दिन रोजाना 8 घंटे काम करे, तो भी उसे अपने यहां लंबित 9,49,437 मामले निबटाने में 27 सालों से अधिक समय लग जाएगा। वह भी तब,जब इस बीच उसके सामने कोई नया मामला पेश न किया जाए।
डेविड हेडली से तो आप वाकिफ ही होंगे... उसने वारदात को अंजाम दिया भारत में, अमेरिका ने उसे गिरफ्तार किया, उस पर मुकदमा भी हुआ और फैसला भी हो गया और वही भारत में कसाब पर अभी तक पहले दौर की सुनवाई ही चल रही है और ना जाने कब तक चलती रहेगी, इंदिरा गाँधी के हत्यारों को सजा हुई पर कितने सालो बाद, बाबरी ढांचे का केस अभी तक जारी है, अफजल को फांसी देने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं, ऐसे ही अजहर मसूद को जेल में बंद रखा और इसी बीच उसके चेलो ने प्लेन हाइजैक कर उसे छुडा लिया... खुद हमारे मंत्री उसे छोड़ कर आये..., चंद बेगैरत लोगो के सामने पूरा भारतीय तंत्र नतमस्तक हो गया... कहा गई खुफिया एजेंसी, कहा हमारी काबिल सेना असलियत तो ये है भारत के अधिकतर नेताओ की रीड की हड्डी है ही नहीं... जो नेता पैदा होते है कॉलेज की गुंडा गर्दी से वो क्या ख़ाक देश चलाएंगे।
इस न्याय व्यवस्था के पुर्नौद्धर के लिए मेरे कुछ सुझाव:
१ पुराने केस पुराने तरह से निबटाये, अवं नए मामलो के लिए अलग से व्यवस्था बनाये जिसके लिए नए इंतजामो की जरूरत होगी, वहा प्रोटोकॉल हो, टाइम लिमिट हो, नए बंदोबस्त हो, नई प्रद्योगिकी हो।
२ हमारी न्याय प्रक्रिया को नए प्रारूप की जरूरत है, जो दो बातो को ध्यान रखे, पहला लोगो में न्याय व्यवस्था के प्रति डर हो अवं विश्वास भी हो।
३ मामलो का वर्गीकरण हो अवं उसका निबटारा एक ही तरह बेंच के द्वारा किया जाए, दुसरे शब्दों में एक बेंच को सरे तरह के मामले ना दिए जाये, बेशक इसके लिए हमें ज्यादा जजों की आवश्यकता होगी।
४ कंपनी मामले, आतंकवादी मामले, टैक्स मामले जल्द सुलझाये जाए क्योकि इनसे देश की साख अवं अर्थव्यवस्था जुडी होती है।
आशा है न्याय से जुड़े लोग मेरी बात को आगे पहुचाएंगे, अगर आपकी भी कुछ राय है तो कमेन्ट के रूप में सामने रखे.
राव ने यह आशंका भी ज़ाहिर की है कि जजों के मौजूदा संख्याबल के हिसाब से इन मामलों को निबटाने में भारतीय न्याय व्यवस्था को 320 वर्ष लग जाएंगे! इधर तीन माह के भीतर लंबित मामलों की सूची में 14 लाख प्रकरणों का इजाफ़ा हो गया है। आश्चर्य होता है ना .... अब आप ही बताइए जब न्याय व्यवस्था इतनी लाचार हो, तो उसका फायदा तो सभी उठाएंगे चाहे हमारे यहाँ के छुटभैये नेता हो या आतंकवाद के नए अवतार।
दिल्ली हाईकोर्ट की पिछली सालाना रपट कहती है कि यूपी का इलाहाबाद हाईकोर्ट अगर साल के 365 दिन रोजाना 8 घंटे काम करे, तो भी उसे अपने यहां लंबित 9,49,437 मामले निबटाने में 27 सालों से अधिक समय लग जाएगा। वह भी तब,जब इस बीच उसके सामने कोई नया मामला पेश न किया जाए।
डेविड हेडली से तो आप वाकिफ ही होंगे... उसने वारदात को अंजाम दिया भारत में, अमेरिका ने उसे गिरफ्तार किया, उस पर मुकदमा भी हुआ और फैसला भी हो गया और वही भारत में कसाब पर अभी तक पहले दौर की सुनवाई ही चल रही है और ना जाने कब तक चलती रहेगी, इंदिरा गाँधी के हत्यारों को सजा हुई पर कितने सालो बाद, बाबरी ढांचे का केस अभी तक जारी है, अफजल को फांसी देने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं, ऐसे ही अजहर मसूद को जेल में बंद रखा और इसी बीच उसके चेलो ने प्लेन हाइजैक कर उसे छुडा लिया... खुद हमारे मंत्री उसे छोड़ कर आये..., चंद बेगैरत लोगो के सामने पूरा भारतीय तंत्र नतमस्तक हो गया... कहा गई खुफिया एजेंसी, कहा हमारी काबिल सेना असलियत तो ये है भारत के अधिकतर नेताओ की रीड की हड्डी है ही नहीं... जो नेता पैदा होते है कॉलेज की गुंडा गर्दी से वो क्या ख़ाक देश चलाएंगे।
इस न्याय व्यवस्था के पुर्नौद्धर के लिए मेरे कुछ सुझाव:
१ पुराने केस पुराने तरह से निबटाये, अवं नए मामलो के लिए अलग से व्यवस्था बनाये जिसके लिए नए इंतजामो की जरूरत होगी, वहा प्रोटोकॉल हो, टाइम लिमिट हो, नए बंदोबस्त हो, नई प्रद्योगिकी हो।
२ हमारी न्याय प्रक्रिया को नए प्रारूप की जरूरत है, जो दो बातो को ध्यान रखे, पहला लोगो में न्याय व्यवस्था के प्रति डर हो अवं विश्वास भी हो।
३ मामलो का वर्गीकरण हो अवं उसका निबटारा एक ही तरह बेंच के द्वारा किया जाए, दुसरे शब्दों में एक बेंच को सरे तरह के मामले ना दिए जाये, बेशक इसके लिए हमें ज्यादा जजों की आवश्यकता होगी।
४ कंपनी मामले, आतंकवादी मामले, टैक्स मामले जल्द सुलझाये जाए क्योकि इनसे देश की साख अवं अर्थव्यवस्था जुडी होती है।
आशा है न्याय से जुड़े लोग मेरी बात को आगे पहुचाएंगे, अगर आपकी भी कुछ राय है तो कमेन्ट के रूप में सामने रखे.
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