विषय पड़कर कही हैरान तो नहीं हो गए... जी जनाब बिलकुल ठीक लिखा है, जानवर तो जंगलो की शान है, चाहे वो जंगल का राजा बाघ हो या कूदते-फुदकते चीतल | क्या फबते है जब अपने इलाके में चहलकदमी करते है, जैसे हम इंसानों से कह रहे हो की देखो तुम क्या जानो शान क्या होती है, जहा मन किया वहा चले गए, कभी मन किया तो पानी में डुबकी लगा ली और कभी मन किया तो डगाल फांद के किसी पेड़ के निचे तान के सो लिए, यहाँ सब अपने दोस्त है.... हा.. थोडा डर रहता है की कही कोई बड़ा जानवर शिकार ना कर ले पर वो तो एक हिस्सा है इस जिंदगी का, आखिर हर किसी से ताकतवर कोई न कोई तो होता ही है, और ताकतवर तो आपको हमेशा दबाने की कोशिश करते ही है, चाहे वो जानवर हो या आप जैसे इंसान | लेकिन फिर ये जानवर प्राणी संग्रहालय ( zoo ) में क्या कर रहा है, कैसा सुस्त सा दिख रहा है, लगता है अभी अभी अपनी आज़ादी खो के यहाँ आया है, शायद अपने दोस्तों को मिस कर रहा है, और ये क्या इसके पिंजरे की दिवार तो शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो गई... क्यों भाई चीतल क्या हुआ...? उस दिन तो जंगल में बड़ी बड़ी बाते कर रहे थे बड़ी डींगे हांक रहे थे की मेरी शान देखो... अब तो खाने के लिए भी कोई और खिलायेगा तो ही खा पाओगे और जाओगे कहा यही रहना है तो अब आदत डाल ही लो, और जब कोई तुम्हे देखने आये और तुम्हे टुन्गाये तो ज्यादा नाराज़ मत होना बस तरस खाना अपनी ज़िन्दगी पर, और हा तुम्हारे शारीर की ये चमक चली जाये तो हैरान मत होना, और तुम्हे मै एक बात बताता हु यहाँ के कई जानवरों का तो जन्म ही पिंजरे में हुआ है, उन्हें तो तुम्हारी तरह मौका ही नहीं मिला कभी जंगल की शान देखने का... तुम्हारे लिए तो ये जानवरों का पिंजरा है पर वो तो पिंजरे के ही जानवर है. हैना.......
3 comments:
भैया, आजकल आदमी भी पिंजरे का जानवर ही है। अपने-अपने दायरे मं, अपने विचारों में और अपने सुरक्षा घेरे में बंद है। एकदम सुरक्षित रहना चाहता है बिना संघर्ष के।
बहुत गज़ब का एकदम जुदा दृष्टिकोण दिखाया आपने तो । बढिया लगा
अजय कुमार झा
bahut sundar mitra....
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
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