Tuesday, April 6, 2010

खजूर और बबुल में अंतर

हम सब ने बचपन से पड़ा है...
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर, पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर!!

इसी विषय में प्रवीण त्रिवेदी ने गूगल बज्ज़ पर लिखा है
-
टिमटिमाते ही सही...
देखो दिए जलते तो है...!!
लड़खड़ाते ही सही...
हर कदम चलते तो है...!!
हम खजूरों से भी सीखे पेड़ की अच्छाइयां
न सही, न दे वे छाया...
कम से कम फलते तो हैं...!!


तो मेरे भी खुरापाती मन में रचनात्मकता का बुलबुला फुट पड़ा और मैंने भी कुछ लिख दिया

छोटा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ बबूल |
फल तो लागत नहीं, लागे वो भी शूल ||

अब जो लोग बड़ो को चिड़ाने के लिए ऊपर दी पंक्तियों का इस्तेमाल करते थे उसके जवाब में बड़े भी कुछ कह सकते है ... जो लोग अभी तक इस समस्या से ग्रस्त थे (यहाँ ये बताना प्रासंगिक होगा की मेरी लम्बाई ६ फिट है) अपना धन्यवाद मुझे कमेन्ट के रूप में दे सकते है..... :-)

5 comments:

शारदा अरोरा said...

लिखा तो आपने सिर्फ तुकबंदी के लिए है,और अच्छा लिखा है ,मैं आपको आशीर्वाद स्वरूप टिप्पणी जरुर दूंगी ताकि आप इस हुनर को रचनात्मकता में विकसित कर सकें |मेरी शुभकामनाएं

Shekhar Kumawat said...

acha antar bataya ap ne


shekhar kumawat

http://kavyawani.blogspot.com/

kshama said...

छोटा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ बबूल |
फल तो लागत नहीं, लागे वो भी शूल ||
Bahut khoob!

Amit Sharma said...

aap khajoor hai(6 feet ke)
mai babool hun ( 5.3 Kaa)

kafi prafol bhavavyakti hai

हिमांशु पन्त said...

waah ji waah... choti si 2 lines poori kitab ka maja de gayi..