Thursday, September 9, 2010

यशवंतराव होलकर की बहादुरी से वाकिफ है आप..?

पिछली कड़ी को जारी रखते हुए, यहाँ मै आपका परिचय इतिहास के उन भुला दिए गए लोगो से करवा रहा हु, जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते है, पर उनका इतिहास में योगदान अभूतपूर्व है, उनके सहस को आप सलाम करेंगे, और जब भी आप इतिहास देखे तो आपको गर्व होगा की हमारा इतिहास कितना गौरवशाली रहा है.

प्रसिध इतिहास शास्त्री एन एस इनामदार ने इनकी तुलना नेपोलियन से की है, और मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय ने इनकी बहादुरी देख कर "महाराजाधिराज राज राजेश्वर अलीजा बहादुर" की उपाधि दी थी, ये थे पश्चिम मध्यप्रदेश की मालवा रियासत के महाराज यशवंत राव होलकर. इनके बारे में आज शायद मालवा के लोग भी इतनी जानकारी नहीं रखते होंगे पर यदि हम इनका योगदान देखे तो कही भी ये महाराणा प्रताप या झासी की रानी से कम नहीं है.
तुकोजीराव होलकर जिन्होंने टीपू सुल्तान को मात देकर भगवा पताका तुंगभद्र नदी के पार फहराया था, उन्ही के पुत्र थे यशवंतराव इनका जन्म 1776  में हुआ था| होलकर के उत्तर भारत में बड़ते प्रभाव की वजह से दौलतराव सिंधिया (ग्वालियर के शासक) ने हमला कर यशवंतराव के बड़े भाई मल्हारराव को मार दिया तब यशवंतराव ने नागपुर के राघोजी भोंसले से आश्रय लिया| इस घटना के बाद यशवंतराव ने किसी पर भरोसा करना छोड़ दिया, और इनका प्रभाव व समर्थन बड़ने लगा. सिर्फ 26 साल की उम्र में इन्होने 1802 में पुणे के पेशवा बाजीराव द्वितीय व सिंधिया की मिलीजुली सेना को मात दी और अमृतराव को पेशवा बना कर वापस इंदौर लौट आये. इसी दौरान अँगरेज़ भारत में अपने पैर पसार रहे थे. इसी वजह से नागपुर के भोंसले, इंदौर के होलकर एवं ग्वालियर के सिंधिया ने साथ मिल कर अंग्रेजो के विरुद्ध लड़ने का फैसला किया पर यहाँ सिंधिया और बाजीराव ने होलकर से अपनी पुरानी दुश्मनी की वजह से इन्हें दगा देकर ये संधि तोड़ दी|

इस वक्त तक नागपुर के भोंसले और बड़ोदा के गायकवाड ने अंग्रेजो के साथ संधि कर ली थी, परन्तु यशवंतराव को यह मंज़ूर नहीं था, इन्होने वापस सभी राजाओ को पत्र लिख कर देश के सम्मान को आगे रख एकजुट होकर अंग्रेजो के विरुद्ध युध लड़ने का आग्रह किया, पर उनके बहरे कानो पर इसका कोई असर नहीं हुआ और अधिकतर ने अंग्रेजो से हाथ मिला लिए थे |
8 जून 1804 को यशवंतराव ने अंग्रेजो को युद्ध में कड़ी मात दी, जो अंग्रेजो के मुह पर तमाचे की तरह लगी | यशवंतराव ने फिर से 8 जुलाई 1804 को कोटा में अंग्रेजो को बुरी तरह हराया | अक्टूबर में मुग़ल शासक शाह आलम द्वितीय को अंग्रेजो ने बंदी बना लिया, उन्होंने यशवंतराव से मदद मांगी, तब यशवंतराव ने दिल्ली की ओर कूच किया, हलाकि वो इसमें सफल नहीं हो पाए पर उनकी बहादुरी को देखते हुए शाह आलम ने उन्हें "महाराजाधिराज राज राजेश्वर अलीजा बहादुर" की उपाधि दी |  11 sep 1804 में अँगरेज़ जनरल वेलेस्स्ले ने लोर्ड ल्युक को लिखा की यदि यशवंतराव को जल्द ही नहीं हराया गया तो वे बाकि राजाओ को अपने साथ मिला कर अंग्रेजो को खदेड़ देंगे | 16 नवम्बर 1804 दिग (राजस्थान) में इन्होने फिर अंग्रेजो को हराया, भरतपुर के महाराज रंजित सिंह ने इनका साथ दिया| लोर्ड ल्युक ने दिग पर हमला किया जहा मराठा और जाट ने डटकर इनका सामना किया, कहा जाता है की यशवंतराव ने 300 अंग्रेजो की नाक काट डाली थी. ये युद्ध ३ महीनो तक चला| इस युद्ध के बाद यशवंतराव अपनी बहादुरी की वजह से पुरे भारत में प्रसिद्ध हो गए थे| यशवंतराव ये युद्ध भी जीतने ही वाले थे, पर आश्चर्यजनक रूप से आखरी मौके पर रंजित सिंह ने अंग्रेजो के साथ संधि कर ली, और यशवंतराव को भरतपुर छोड़ के जाना पड़ा| 

एक बार फिर सिंधिया और होलकर साथ में आये, जब यह बात अंग्रेजो को पता पड़ी तो उनकी चिंता बड़ गई, लोर्ड ल्युक ने जनरल वेल्लेस्ले को यशवंतराव के सामने लड़ने में अपनी असमर्थता जताई और लिखा की यशवंतराव की सेना को अंग्रेजो को मारने में बड़ा मज़ा आता है | तब जनरल ने फैसला किया की होलकर के साथ बिना युद्ध शांति स्थापित की जाये और उनके सारे क्षेत्र उन्हें बिना शर्त वापस लौटा दिए जाये.
यशवंतराव ने अंग्रेजो के साथ कोई भी समझौता करने से इंकार कर दिया, पर सिंधिया ने अंग्रेजो के साथ समझौता कर लिया और यशवंतराव अकेले पड़ गए. यशवंतराव ने फिर भी हार नहीं मानी और पंजाब के कई राजाओ को पत्र लिखा कर साथ लड़ने का आग्रह किया | पर किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया | ब्रिटिश कौंसिल ने हर हाल में होलकर के साथ शांति स्थापित करने का आदेश दिया, क्योकि यशवंतराव सभी राजाओ को एकजुट करने में जी जान से लगे हुए थे |
यशवंतराव इकलौते ऐसे भारतीय राजा थे जिनसे अंग्रेजो ने हर हाल में बिना शर्त समझौता करने के लिए पहल की | यशवंतराव ने जब देखा की कोई भी उनका साथ नहीं दे रहा है तब वह आखरी भारतीय राजा थे जिन्होंने १८०५ में राजघाट (तब पंजाब, अभी दिल्ली) में अंग्रेजो के साथ संधि करी | अंग्रेजो ने उन्हें स्वतन्त्र शासक माना और उनके सारे क्षेत्र लौटा दिए और उनके क्षेत्र में कोई भी हस्तक्षेप नहीं करने का वचन दिया |

इसके बावजूद भी यशवंतराव को अंग्रेजो से संधि मजूर नहीं थी और उन्होंने फिर से दौलत राव सिंधिया को साथ मिलकर लड़ने के लिए पत्र लिखा, सिंधिया ने उन्हें फिर दगा देकर ये पत्र अंग्रेजो को दे दिया, इसके बाद यशवंतराव ने अकेले ही अंग्रेजो से युद्ध लड़ का भारत से बाहर खदेड़ना का फैसला किया | इसके लिए उन्हें बड़े लश्कर और गोला बारूद की जरुरत थी जिसके लिए उन्होंने भानपुर (मंदसौर जिला) में कारखाना डाला और लश्कर के लिए दिन रात मेहनत करना चालू किया पर इतनी कड़ी मेहनत की वजह से 28 अक्टूबर 1806 में सिर्फ ३५ साल की उम्र में उनका देहांत हो गया |

क्या आप कल्पना कर सकते है, इतनी छोटी उम्र में उन्होंने कई बार अंग्रेजो को मात दी, और कई राजाओ को लड़ने के लिए प्रेरित किया. आप खुद ही सोचिये यदि सिंधिया, गायकवाड और पेशवा ने उन्हें दगा नहीं दिया होता तो अँगरेज़ कभी यहाँ टिक नहीं पाते.
यशवंतराव सच्चे देशभक्त और स्वाभिमानी व्यक्ति थे.

Sunday, June 13, 2010

हेमू को जानते है आप...?

सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य यही पूरा नाम है हेमू का. हेमू इतिहास के भुला दिए गए उन चुनिन्दा लोगो में शामिल है जिन्होंने इतिहास का रुख पलट कर रख दिया था. हेमू ने बिलकुल अनजान से घर में जन्म लेकर, हिंदुस्तान के तख़्त पर राज़ किया. उसके अपार पराक्रम एवं लगातार अपराजित रहने की वजह से उसे विक्रमादित्य की उपाधि दी गयी.
हेमू का जन्म एक ब्राह्मण श्री राय पूरण दस के घर १५०१ में अलवर राजस्थान में हुआ, जो उस वक़्त पुरोहित (पूजा पाठ करने वाले) थे, किन्तु बाद में मुगलों के द्वारा पुरोहितो को परेशान करने की वजह से रेवारी (हरियाणा) में आ कर नमक का व्यवसाय करने लगे.
काफी कम उम्र से ही हेमू, शेर शाह सूरी के लश्कर को अनाज एवं पोटेशियम नाइट्रेट (गन पावडर हेतु) उपलब्ध करने के व्यवसाय में पिताजी के साथ हो लिए थे. सन १५४० में शेर शाह सूरी ने हुमायु को हरा कर काबुल लौट जाने को विवश कर दिया था. हेमू ने उसी वक़्त रेवारी में धातु से विभिन्न तरह के हथियार बनाने के काम की नीव राखी, जो आज भी रेवारी में ब्रास, कोंपर, स्टील के बर्तन के आदि बनाने के काम के रूप में जारी है.
शेर शाह सूरी की १५४५ में मृत्यु के पाश्चर इस्लाम शाह ने उसकी गद्दी संभाली, इस्लाम शाह ने हेमू की प्रशासनिक क्षमता को पहचाना और उसे व्यापार एवं वित्त संबधी कार्यो के लिए अपना सलाहकार नियुक्त किया. हेमू ने अपनी योग्यता को सिद्ध किया और इस्लाम शाह का विश्वासपात्र बन गया... इस्लाम शाह हेमू से हर मसले पर राय लेने लगा, हेमू के काम से खुश होकर उसे दरोगा-ए-चौकी (chief of intelligence) बना दिया गया.
१५४५ में इस्लाम शाह की मृत्यु के बाद उसके १२ साल के पुत्र फ़िरोज़ शाह को उसी के चाचा के पुत्र आदिल शाह सूरी ने मार कर गद्दी  हथिया ली. आदिल ने हेमू को अपना वजीर नियुक्त किया. आदिल अय्याश और शराबी था... कुल मिला कर पूरी तरह अफगानी सेना का नेतृत्व हेमू के हाथ में आ गया था.
हेमू का सेना के भीतर जम के विरोध भी हुआ.. पर हेमू अपने सारे प्रतिद्वंदियो को एक एक कर हराता चला गया.
उस समय तक हेमू की अफगान सैनिक जिनमे से अधिकतर का जन्म भारत में ही हुआ था.. अपने आप को भारत का रहवासी मानने लग गए थे और वे मुग़ल शासको को विदेशी मानते थे, इसी वजह से हेमू हिन्दू एवं अफगान दोनों में काफी लोकप्रिय हो गया था. 
हुमायु ने जब वापस हमला कर शेर शाह सूरी के भाई को परस्त किया तब हेमू बंगाल में था, कुछ समय बाद हुमायूँ की मृत्यु हो गई.. हेमू ने तब दिल्ली की तरफ रुख किया और रास्ते में बंगाल, बिहार उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश की कई रियासतों को फ़तेह किया. आगरा में मुगलों के सेना नायक  इस्कंदर खान उज्बेग को जब पता चला की हेमू उनकी तरफ आ रहा है तो वह बिना युद्ध किये ही मैदान छोड़ कर भाग गया.
हेमू ने अपने जीवन काल में एक भी युद्ध नहीं हारा, पानीपत की लडाई में उसकी मृत्यु हुई जो उसका आखरी युद्ध था.
अक्टूबर ६, १५५६ में हेमू ने तरदी बेग खान (मुग़ल) को हारा कर दिल्ली पर विजय हासिल की. यही हेमू का राज्याभिषेक हुआ और उसे विक्रमादित्य की उपाधि से नवाजा गया.
लगभग ३ शताब्दियों के मुस्लिम शासन के बाद पहली बार (कम समय के लिए ही सही) कोई हिन्दू दिल्ली का राजा बना. भले ही हेमू का जन्म ब्राह्मण समाज में हुआ और उसको पालन पोषण भी पुरे धार्मिक तरीके से हुआ पर वह सभी धर्मो को समान मानता था, इसीलिए उसके सेना के अफगान अधिकारी उसकी पूरी इज्ज़त करते थे और इसलिए भी क्योकि वह एक कुशल सेना नायक साबित हो चूका था.
पानीपत के युद्ध से पहले अकबर के कई सेनापति उसे हेमू से युद्ध करने के लिए मना कर चुके थे, हलाकि बैरम खान जो अकबर का संरक्षक भी था, ने अकबर को दिल्ली पर नियंत्रण के लिए हेमू से युद्ध करने के लिए प्रेरित किया. पानीपत के युद्ध में भी हेमू की जीत निश्चित थी, किन्तु एक तीर उसकी आँख में लग जाने से, नेतृत्व की कमी की वजह से उसकी सेना का उत्साह कमजोर पड़ गया और उसे बंदी बना लिया गया... अकबर ने हेमू को मारने से मना कर दिया किन्तु बैरम खान ने उसका क़त्ल कर दिया.
आज कई लोग इतिहास के इस महान नायक को भुला चुके है, किन्तु मुगलों को कड़ी टक्कर देने की वजह से ही हिंदुस्तान कई विदेशी आक्रमणों से बचा रहा...  आप खुद ही सोचिये.. बिना किसी राजनैतिक प्रष्ठभूमि के इतनी उचाईयो को छुने वाले का व्यक्तित्व कैसा रहा होगा.
आज भी हेमू की हवेली जर्जर हालत में रेवारी में है.... भारत ही शायद एक देश है जहा... इतिहास की कोई कदर नहीं होती.

Sunday, May 16, 2010

एक सच्ची कहानी जो आपके रोंगटे खड़े कर देगी

आपसे ज्यादा कुछ न कहते हुए दिखा रहा हु एक ऐसा विडियो, जिसमे सुनीता कृष्णन, एक सामाजिक कार्यकर्ता, अपनी बात कह रही है, सारी कहानी बंया करता एक ऐसा विडियो जो शायद आप को रोने को मजबूर करदे.

Tuesday, April 27, 2010

ब्राह्मण की समस्या और मेनेजमेंट का मंत्र

एक बार एक ब्राह्मण जिस का नाम सेवाराम था, बीरबल के पास गया और बोला मेरे पूर्वज प्रकांड पंडित और विद्वान् थे सभी लोग उन्हें पंडितजी बुलाते थे, मेरे पास पैसा नहीं है और ना ही मुझे इसकी चाहत है, पर मेरी एक ही इच्छा है, की लोग मुझे पंडित जी कह कर बुलाये। सेवाराम ने बीरबल से पूछा क्या ऐसा हो सकता है।
बीरबल मुस्कुराया और बोला यह तो बहुत आसान है, आज से जो भी तुम्हे पंडित जी बुलाये उसे तुम जोर से डाटो। वहा के बच्चे ब्राह्मण को पसंद नहीं करते थे क्योकि वह उन्हें डाटता था, बीरबल ने बच्चो से कहा सेवाराम को पंडित जी कहो तो वह चिडता है।
बस अब बच्चे उसे चिड़ाने के लिए पंडित जी बुलाते और बीरबल के कहे अनुसार ब्राह्मण उन्हें और जोर से डाटता।
बस फिर क्या था, धीरे धीरे ये नाम फैलता गया और लोग उसे पंडित जी बुलाने लगे। बाद में ब्राह्मण ने डाटना बंद कर दिया पर ये नाम उसके साथ ही चिपक गया।
मंत्र :
आप भी अफवाहों को आपके फायेदे के लिए भी इस्तेमाल कर सकते है, अफवाह फैलाने वाले कहानी के बच्चो की तरह हर जगह मौजूद है, आपके ऑफिस में, समाज में, हर जगह।
आप को पता होना चाहिए की कैसे उनसे फायदा उठाना है, देखिये कैसे फ़िल्मी हस्तिया या नेता, उनका इस्तेमाल हमेशा खबरों में रहने के लिए करते है.

Saturday, April 24, 2010

भगत सिंह केस के दस्तावेज़ भारत में

भगत सिंह

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे विवादास्पद और चर्चित मुक़दमे 'लाहौर षडयंत्र केस' के कोर्ट ट्रायल के दस्तावेज़ पहली बार भारत लाए गए हैं.
इस मुक़दमे के दस्तावेज़ की प्रति लाहौर हाईकोर्ट ने हरिद्वार स्थित गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय को सौंपी हैं.
क़रीब 2000 पन्ने के इस दुर्लभ दस्तावेज़ को विश्वविद्यालय के अतिविशिष्ट श्रद्धानंद संग्रहालय में रखा गया है.
उल्लेखनीय है कि आठ अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने विधानसभा में बम फेंकने के बाद खुद ही गिरफ्तारी दे दी थी. उनका मक़सद था अदालत को मंच बनाकर अपने क्रांतिकारी विचारों का प्रसार करना. बाद में जब ये पाया गया कि भगत सिंह ब्रिटिश पुलिस अधीक्षक जेपी साण्डर्स की हत्या में भी शामिल थे तो उन पर और उनके दो साथियों राजगुरू और सुखदेव पर देशद्रोह के साथ-साथ हत्या का भी मुक़द्दमा चला जो लाहौर षडयंत्र केस या भगत सिंह ट्रायल के नाम से इतिहास में विख्यात है.

इन दस्तावेज़ों में यह शामिल है कि मुक़दमों के दौरान भगत सिंह और उनके साथियों ने क्या कहा था.
इसके अनुसार भगत सिंह ने असेंबली में बम फेंकने के बाद जो पर्चे फेंके थे उसमें लिखा था, “किसी आदमी को मारा जा सकता है लेकिन विचार को नहीं.”
भगत सिंह ने 'बड़े साम्राज्यों का पतन हो जाता है लेकिन.विचार हमेशा जीवित रहते हैं' और 'बहरे हो चुके लोगों को सुनाने के लिये ऊंची आवाज जरूरी है' जैसी बातें भी पर्चों में लिखी थीं.
इतिहासकार कहते हैं कि इसी घटना के बाद उन पर देशद्रोह का मुकद्दमा चला जिसने एकबारगी पूरे ब्रिटिश राज को थर्रा दिया था और देश भर में जन-आक्रोश उमड़ पड़ा था. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर स्वतंत्र कुमार इन दस्तावेज़ों को भारत लाए जाने को बड़ी उपलब्धि मानते हैं. वे कहते हैं, "हमारे लिये ये गर्व की बात है. विश्वविद्यालय की स्थापना गुजरांवला में ही हुई थी जो अब पाकिस्तान में है. मैं पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश के निमंत्रण पर लाहौर गया हुआ था. वहां उन्होंने वो कक्ष और रिकॉर्ड दिखाए जो इस मुकद्दमे से जुड़े हुए थे. मैंने इसकी एक प्रति के लिये अनुरोध किया और मुझे खुशी है कि पाकिस्तान हाईकोर्ट ने इसे स्वीकार कर लिया.”
वो कहते हैं, “कई बार आदमी काम करता है और उसे अंजाम पता नहीं होता लेकिन इन तीन युवकों का जज़्बा देखकर लगता है कि उन्होंने अंजाम ही सबसे आगे रखा और फाँसी के लिये ही तैयारी की.”
पाँच मई 1930 को शुरू हुआ ये मुक़द्दमा 11 सितंबर 1930 तक चला था.
इतिहासकार कहते हैं कि ये मुकद्दमा इसलिये भी अभूतपर्व था क्योंकि इसमें क़ानूनी न्याय तो दूर की बात न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत को भी तिलांजलि दे दी गई थी जिसके तहत हर अभियुक्त को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाता है.
संग्रहालय के निदेशक कहते हैं कि इससे भगत सिंह पर शोध करने वालों को मदद मिलेगी
वे बताते हैं कि सरकार ने एक अध्यादेश निकालकर ऐसे अधिकार हासिल कर लिये जिसकी मदद से वो गवाही के सामान्य नियमों और अपील के अधिकार के बिना भगतसिंह और उनके साथियों पर मुकद्दमा चला सकती थी.
तमाम विरोधी स्वरों और गांधीजी के आग्रह के बावजूद 23 मार्च 1931 को तीनों को फांसी पर लटका दिया गया.
इन दस्तावेज़ों में पुलिस अधिकारियों का पक्ष और जजों की टिप्पणियों के साथ अदालत की हर कार्यवाही का विस्तार से वर्णन है. जजों का फ़ैसला सहित पूरी कार्यवाही फारसी में लिखी गई है हालांकि नाम अंग्रेजी में लिखे हुए हैं.
संग्रहालय के निदेशक डॉ. प्रभात कहते हैं, "भगत सिंह की विचारधारा को लेकर कई धारणाएँ और मान्यताएँ है और उनके अध्ययन में ये दस्तावेज़ काफ़ी उपयोगी होगा."
(उपरोक्त लेख बीबीसी की हिंदी वेबसाइट से लिया गया है)

Monday, April 12, 2010

महात्मा गाँधी का चंगेस खान कनेक्शन

एक बार हम से बोले हमारे परम मित्र पंडित प्यारे लाल..
कम्पुटर का बटन दबाओ, जो चाहते हो सब पाओ...
हमने आव न देखा ताव, कम्पुटर का बटन दबाया और पूछा भाया
महात्मा गाँधी के बारे में क्या जानते हो ?
कम्पुटर बोला वे बड़े खूंखार थे, नाश्ते में ३० अंडे और ५ मुर्गिया खाते थे
तलवारबजी के उस्ताद थे, पूरी दुनिया पर अपनी हुकूमत चलाते थे,
हम बोले भैया गजब मत ढहाओ, महात्मा गाँधी के नाम पर कलंक मत लगाओ
तो कंप्यूटर बोला भैया आप भी महात्मा गाँधी की जगह चंगेस खान का बटन मत दबाओ.

Sunday, April 11, 2010

आज शहर से उनके फिर एक मुसाफिर आया

सोये हुए जज्बात को, किस्मत ने यूँ जगाया 
आज शहर से उनके फिर, एक मुसाफिर आया

उसके कपड़ो पर लगी धुल भी, उस शहर का हिस्सा थी
जिस ओर जाने को हमने, हर नुस्खा आजमाया

कितनी खुशनसीब है ये आखे, जो देखती है हर रोज़ उन्हें
तडपे इसकदर हम की अब इस बुत से, डरता है खुद ही का साया

सोचता हु क्या वहा, कलियाअभी भी खिलाती है
यहाँ तो उनके बगैर, हर पत्ता मुरझाया

जी में आया की एक बार छु लू उस मुसाफिर को
शायद इस तरह हमने, अपना सन्देश उन तक पहुचाया

Saturday, April 10, 2010

जानवर का पिंजरा या पिंजरे का जानवर


विषय पड़कर कही हैरान तो नहीं हो गए... जी जनाब बिलकुल ठीक लिखा है, जानवर तो जंगलो की शान है, चाहे वो जंगल का राजा बाघ हो या कूदते-फुदकते चीतल | क्या फबते है जब अपने इलाके में चहलकदमी करते है, जैसे हम इंसानों से कह रहे हो की देखो तुम क्या जानो शान क्या होती है, जहा मन किया वहा चले गए, कभी मन किया तो पानी में डुबकी लगा ली और कभी मन किया तो डगाल फांद के किसी पेड़ के निचे तान के सो लिए, यहाँ सब अपने दोस्त है.... हा.. थोडा डर रहता है की कही कोई बड़ा जानवर शिकार ना कर ले पर वो तो एक हिस्सा है इस जिंदगी का, आखिर हर किसी से ताकतवर कोई कोई तो होता ही है, और ताकतवर तो आपको हमेशा दबाने की कोशिश करते ही है, चाहे वो जानवर हो या आप जैसे इंसान | लेकिन फिर ये जानवर प्राणी संग्रहालय ( zoo ) में क्या कर रहा है, कैसा सुस्त सा दिख रहा है, लगता है अभी अभी अपनी आज़ादी खो के यहाँ आया है, शायद अपने दोस्तों को मिस कर रहा है, और ये क्या इसके पिंजरे की दिवार तो शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो गई... क्यों भाई चीतल क्या हुआ...? उस दिन तो जंगल में बड़ी बड़ी बाते कर रहे थे बड़ी डींगे हांक रहे थे की मेरी शान देखो... अब तो खाने के लिए भी कोई और खिलायेगा तो ही खा पाओगे और जाओगे कहा यही रहना है तो अब आदत डाल ही लो, और जब कोई तुम्हे देखने आये और तुम्हे टुन्गाये तो ज्यादा नाराज़ मत होना बस तरस खाना अपनी ज़िन्दगी पर, और हा तुम्हारे शारीर की ये चमक चली जाये तो हैरान मत होना, और तुम्हे मै एक बात बताता हु यहाँ के कई जानवरों का तो जन्म ही पिंजरे में हुआ है, उन्हें तो तुम्हारी तरह मौका ही नहीं मिला कभी जंगल की शान देखने का... तुम्हारे लिए तो ये जानवरों का पिंजरा है पर वो तो पिंजरे के ही जानवर है. हैना.......

Thursday, April 8, 2010

एक भारतीय कभी आतंकवादी नहीं हो सकता, क्यों ??


एक भारतीय कभी आतंकवादी नहीं हो सकता क्योकि

1. हम हमेशा लेट होते है, हम उस प्लेन को ही मिस कर देंगे जिसे हमें किडनेप करना है.
2. प्लेन के फ्री खाने और ड्रिंक में हम भूल ही जायेंगे की हम यहाँ क्यों आये है.
3. हम airhotess के साथ फोटो खीचवाने के लिए आपस में ही लड़ लेंगे.
4. हम कभी कोई सीक्रेट नहीं रख सकते, हम हफ्ते भर पहले ही सबको मिशन के बारे में बता देंगे.
5. हम हमेशा अपने ट्रेनिंग कैंप मिस करेंगे और कभी अटैंड भी किया तो पूरा ध्यान बिच के लंच ब्रेक में खाने पर रहेगा.
6. हम हमेशा जोर से बात कर कर सबका ध्यान अपनी ओर खीच लेते है.
7. क्रिकेट मैच की वजह से हम मिशन को कभी भी आगे के लिए स्थगित कर सकते है.
8. हम अपनी ए के ४७ को सेकंड हैण्ड मार्केट में थोड़े से प्रोफिट के लिए बेच देंगे.
9. हैण्ड ग्रानेड से बारूद निकल कर बच्चो के लिए दिवाली के फटाके बना लेंगे.
10. हमारा पूरा ध्यान मिशन की बजाये अपने ग्रुप का लीडर बनने पर रहेगा.

Tuesday, April 6, 2010

खजूर और बबुल में अंतर

हम सब ने बचपन से पड़ा है...
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर, पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर!!

इसी विषय में प्रवीण त्रिवेदी ने गूगल बज्ज़ पर लिखा है
-
टिमटिमाते ही सही...
देखो दिए जलते तो है...!!
लड़खड़ाते ही सही...
हर कदम चलते तो है...!!
हम खजूरों से भी सीखे पेड़ की अच्छाइयां
न सही, न दे वे छाया...
कम से कम फलते तो हैं...!!


तो मेरे भी खुरापाती मन में रचनात्मकता का बुलबुला फुट पड़ा और मैंने भी कुछ लिख दिया

छोटा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ बबूल |
फल तो लागत नहीं, लागे वो भी शूल ||

अब जो लोग बड़ो को चिड़ाने के लिए ऊपर दी पंक्तियों का इस्तेमाल करते थे उसके जवाब में बड़े भी कुछ कह सकते है ... जो लोग अभी तक इस समस्या से ग्रस्त थे (यहाँ ये बताना प्रासंगिक होगा की मेरी लम्बाई ६ फिट है) अपना धन्यवाद मुझे कमेन्ट के रूप में दे सकते है..... :-)

Saturday, April 3, 2010

आर डी बर्मन एवं गुलज़ार की जुगलबंदी

गुलज़ार साहब और पंचम दा, दोनों की अपनी एक शख्सियत है, एक किस्म की रूमानियत है, जो जुदा होने पर अलग है पर साथ होने पर कई झरोखे खोलती है. कई बार पता नहीं चलता लेकिन कुछ लोगो की मौजूदगी आपकी शअख्सियत को एक नई पहचान देती है, एक vibration जो आप से ऐसे मुक्तलिफ़ काम करवाती है जो आपके जेहन में भी न हो. चंद मोती पेश है आपके लिए... वक़्त निकाल कर सुनिए जरुर

- इजाज़त सुने
कतरा कतरा बहती है कतरा कतरा बहने दो जिंदगी है
छोटी सी कहानी से बारिशो के पानी से

- नमकीन सुने
फिर से अइयो बदरा बिदेसी
राह पर चलते है यादो पर सफ़र करते है

- थोड़ी सी बेवफाई सुने
हजार राहे मूड के देखि कही से कोई सदा ना आई

- परिचय सुने
मुसाफिर हु यारो ना घर है ना ठिकाना

- आंधी सुने
तुम आ गए हो नूर आ गया है
तेरे बिना जिंदगी से शिकवा तो नहीं
इस मोड़ से जाते है

- लिबास सुने
खामोश सा अफसाना पानी से लिखा होता
सिली हवा छु गई, गिला बदन जल गया

- मासूम सुने
तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हु मई
हुजूर इस कदर भी ना इतरा के चलिए
दो नैना एक कहानी, थोडा सा आंसु थोडा सा पानी

- खुशबु सुने
ओह मांझी रे
बेचारा दिल क्या करे

- किनारा सुने
नाम ग़ुम जायेगा
जाने क्या सोच कर नहीं गुजरा

घर सुने
आपकी आँखों में कुछ महके हुए से ख्वाब है
फिर वही रात है
आजकल पाव जमी पर नहीं पड़ते मेरे

सितारा सुने
ये साये है ये दुनिया है
थोड़ी सी ज़मीन थोडा आसमान

Wednesday, March 31, 2010

नरेन्द्र मोदी की ठाकरे चाल


गुजरात के गिर जंगल आज एशिआइ सिंह की आखरी शरण स्थली है, ऐसे में अगर कोई महामारी गिर पर आती है तो सारे सिंहो का अस्तित्व एक ही झटके में खत्म हो सकता है ऐसे में भारतीय वन्य अनुसन्धान केंद्र एवं WWF की बहोत ही महत्वकांक्षी योजना है, गुजरात के सिंहो का मध्य प्रदेश के कुनो पालपुर जंगलो में पुनर्स्थापन. कुनो पालपुर शिवपुरी जिले में सिंहो का एतिहासिक बसेरा रहा है, जो आज सिंहो के पुनर्स्थापन के लिए सबसे उपयुक्त पाया गया है, इसे नेशनल पार्क घोषित कर दिया गया है एवं यहाँ के गाँवो को भी दूसरी जगह विस्थापित कर दिया गया है. यह अब सिंहो के लिए पूरी तरह से तैयार है. ऐसे में गुजरात की सरकार ने गिर से सिंहो के जोड़े देने से मना कर दिया है, उन्हें ये डर है की गिर जो अभी सिंहो को देखने के लिए एकमात्र पर्यटन केंद्र है, उसका अधिपत्य समाप्त हो जायेगा. नरेन्द्र मोदी की गुजरात की सरकार देशहित में ना सोचते हुए सिर्फ राज्य हित में सोच रही है, जैसा राज ठाकरे एवं शिव सेना मुंबई और महाराष्ट्र के बारे में सोचते है.
मेरा आप से प्रश्न है की क्या यह गुजरात सरकार का सुक्ष्म दृष्टिकोण नहीं है एवं अगर यह जायज है, तो फिर हम सिर्फ राज ठाकरे और शिव सेना पर क्यों उंगली उठाये?

wild... inside me



बाहर से में एक सभ्य व्यक्ति हूँ, सबकी तरह शराफत से उठता बैठता हूँ, दुसरो के पुरे सम्मान का ख्याल रखता हूँ एवं वैसा ही व्यवहार करता हूँ, जिसकी उम्मीद वो मुझसे लगाये बैठे है, जैसे नकली मुस्कराना, लोगो की हाँ में हाँ मिलाना... बड़ो का सम्मान चाहे वो कितनी ही मूर्खतापूर्ण बाते करते हो, ऑफिस में सहकर्मियों के साथ औपचारिकता के सारे नियमो का पालन... पर पर पर..... कभी कभी मै चौक जाता हु... मेरे खुद के वाइल्ड पार्ट से.... जो चीखना चाहता है... सारे नियमो की धज्जिया उड़ना चाहता है, जो vodka पी कर झूमना चाहता है, किसी तेज गाने पर जबरदस्त नाचना चाहता है, बंजी जम्पिंग करना चाहता है, सारे लोगो को उनकी असलियत बताना चाहता है, समुद्र में गोते लगाना चाहता है..... बच्चो की तरह मासूम होना चाहता है, जिस व्यक्ति से मेरा मन करे, बस जा कर उससे बात करना चाहता है, छोटे बड़े के, स्त्री पुरुष के, जिनिअस और बेवकूफ के, सुन्दर और भद्दे के, employer और employee के सारे अंतर को भूल जाना चाहता है.
मुमकिन होते हुए भी.. क्यों मै नहीं कर पता ये सब, क्या मै डरता हु... क्या मै असुरक्षित महसूस करता हूँ या अपने खुद के दायरे बना लिए है मैंने.... हा शायद यही है.... मैं इन दायरों को तोड़ देना चाहता हूँ, बाहर निकल जाना चाहता हु खुद के comfort zone से.... और देखना चाहता हूँ, महसूस करना चाहता हु the wild inside me....

Tuesday, March 30, 2010

शेयर मार्केट... क्यों जरुरी है ?

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में एक स्वतंत्र शेयर मार्केट बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. एक आम आदमी तो आज भी शेयर मार्केट को सट्टा बाज़ार ही समझता है. कई लोगो ने इसमें पैसे खोये भी होंगे, पर क्या आपने सोचा की शेयर मार्केट क्यों होता है, इसका क्या महत्व है, और आप कैसे इसमें अपना योगदान दे कर न सिर्फ अपनी बचत का बेहतर इन्वेस्टमेंट जरिया पा रहे है बल्कि आप देश की अर्थव्यवस्था में भी सहयोग कर रहे है, कैसे ??
आइये पहले हम इसे मूल रूप से समझते है, शेयर क्या है ?
जब कोई कंपनी अपना व्यवसाय आरंभ करती है, तो उसे पूंजी चाहिए. इसके तीन तरीके है पहला स्वपुंजी, दूसरा बैंक तीसरा आम आदमी से सहयोग जिसे हम शेयर कहते है, पहला और दूसरा तरीका तो सबकी समझ में आता है लेकिन कोई आम आदमी क्यों किसी कंपनी में अपनी कमाई लगाएगा ? पहला तो कंपनी उसे अपने लाभ में हिस्सेदारी देती है, अगर कंपनी ने अच्छा व्यवसाय किया तो वह उस लाभ का अंश अपने शेयरहोल्डर्स को लाभांश (डिविडेंड) के रूप में देती है.
कंपनी अपने शेयर आम लोगो को बेचने के लिए IPO लाती है जो की निश्चित शेयर के लिए होता है, अगर लोगो को लगता है की कंपनी आगे चल कर अच्छा मुनाफा कमाएगी, तो लोग उसके शेयर खरीदेंगे. अब IPO बंद होने के बाद जो लोग शेयर नहीं खरीद पाए वो क्या करेंगे क्योंकी उन्हें लगता है की ये कंपनी आगे चल कर अच्छा करेगी, तो वो लोग ज्यादा दाम दे कर उनलोगों के शेयर खरीद सकते है, जिन्हें IPO में शेयर मिले है, इस खरीदी बिक्री को नियंत्रित करने के लिए ही शेयर मार्केट होते है जैसे भारत में NSE, BSE है.
अब आप समझे की जितना ज्यादा लोग खरीदी बिक्री करेंगे उतना कंपनी के लिए पूंजी जुटाना आसान होगा, क्योकि बैंक और स्वपुंजी की अपनी एक सीमा है, इस तरह से कंपनी अपने व्यवसाय को बड़ा सकती है, इससे देश की कमाई भी बढेगी, लोगो को रोजगार भी मिलेगा और देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी.
इस व्यवस्था का कंपनी गलत फायदा न उठाये इसीलिए देश में SEBI जैसी रेगुलेटरी ऑथोरिटी होती है, जो यह निश्चित करती है की आप का पैसा सुरक्षित रहे एवं सही तरीके से इस्तेमाल हो.
अब आप किस तरह से मुनाफा कमा सकते है, तो एक ही तरीका है, आप यह अनुमान लगा कर इन्वेस्ट करे की उस कंपनी का भविष्य कैसा है, क्योकि जितना अच्छा उस कम्पनी का लाभ होगा उतना उसके शेयर की मांग होगी एवं जीतनी मांग होगी उतना ही उसका मार्केट रेट ज्यादा होगा. और हां कंपनी को अपना business करने के लिए आप को टाइम तो देना पड़ेगा ना इसीलिए सब्र जरुर रखिये.. अगर आप इस मुलभुत सिधांत को समझ गए तो आपको कभी सेंसेक्स और निफ्टी के बड़ने और घटने से फरक नहीं पड़ेगा.. और आप निश्चित ही मुनाफे में रहेंगे.

Monday, March 29, 2010

नई पहल

आज दैनिक भास्कर के रविवारीय संस्करण में एक लेख पड़ा, जान कर हैरानी हुइ की, आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस वीवी राव ने न्यायपालिका में ई-गवर्नेस को लेकर पढ़े गए अपने पर्चे में जब यह धमाका किया कि देश के सभी छोटे-बड़े न्यायालयों में लगभग 3 करोड़ 12 लाख 8 हज़ार मामले लंबित पड़े हैं, तो सबके कान खड़े होना लाजिमी था।
राव ने यह आशंका भी ज़ाहिर की है कि जजों के मौजूदा संख्याबल के हिसाब से इन मामलों को निबटाने में भारतीय न्याय व्यवस्था को 320 वर्ष लग जाएंगे! इधर तीन माह के भीतर लंबित मामलों की सूची में 14 लाख प्रकरणों का इजाफ़ा हो गया है। आश्चर्य होता है ना .... अब आप ही बताइए जब न्याय व्यवस्था इतनी लाचार हो, तो उसका फायदा तो सभी उठाएंगे चाहे हमारे यहाँ के छुटभैये नेता हो या आतंकवाद के नए अवतार।
दिल्ली हाईकोर्ट की पिछली सालाना रपट कहती है कि यूपी का इलाहाबाद हाईकोर्ट अगर साल के 365 दिन रोजाना 8 घंटे काम करे, तो भी उसे अपने यहां लंबित 9,49,437 मामले निबटाने में 27 सालों से अधिक समय लग जाएगा। वह भी तब,जब इस बीच उसके सामने कोई नया मामला पेश न किया जाए।
डेविड
हेडली से तो आप वाकिफ ही होंगे... उसने वारदात को अंजाम दिया भारत में, अमेरिका ने उसे गिरफ्तार किया, उस पर मुकदमा भी हुआ और फैसला भी हो गया और वही भारत में कसाब पर अभी तक पहले दौर की सुनवाई ही चल रही है और ना जाने कब तक चलती रहेगी, इंदिरा गाँधी के हत्यारों को सजा हुई पर कितने सालो बाद, बाबरी ढांचे का केस अभी तक जारी है, अफजल को फांसी देने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं, ऐसे ही अजहर मसूद को जेल में बंद रखा और इसी बीच उसके चेलो ने प्लेन हाइजैक कर उसे छुडा लिया... खुद हमारे मंत्री उसे छोड़ कर आये..., चंद बेगैरत लोगो के सामने पूरा भारतीय तंत्र नतमस्तक हो गया... कहा गई खुफिया एजेंसी, कहा हमारी काबिल सेना असलियत तो ये है भारत के अधिकतर नेताओ की रीड की हड्डी है ही नहीं... जो नेता पैदा होते है कॉलेज की गुंडा गर्दी से वो क्या ख़ाक देश चलाएंगे।
इस न्याय व्यवस्था के पुर्नौद्धर के लिए मेरे कुछ सुझाव:
१ पुराने केस पुराने तरह से निबटाये, अवं नए मामलो के लिए अलग से व्यवस्था बनाये जिसके लिए नए इंतजामो की जरूरत होगी, वहा प्रोटोकॉल हो, टाइम लिमिट हो, नए बंदोबस्त हो, नई प्रद्योगिकी हो।
२ हमारी न्याय प्रक्रिया को नए प्रारूप की जरूरत है, जो दो बातो को ध्यान रखे, पहला लोगो में न्याय व्यवस्था के प्रति डर हो अवं विश्वास भी हो।
३ मामलो का वर्गीकरण हो अवं उसका निबटारा एक ही तरह बेंच के द्वारा किया जाए, दुसरे शब्दों में एक बेंच को सरे तरह के मामले ना दिए जाये, बेशक इसके लिए हमें ज्यादा जजों की आवश्यकता होगी।
४ कंपनी मामले, आतंकवादी मामले, टैक्स मामले जल्द सुलझाये जाए क्योकि इनसे देश की साख अवं अर्थव्यवस्था जुडी होती है।

आशा है न्याय से जुड़े लोग मेरी बात को आगे पहुचाएंगे, अगर आपकी भी कुछ राय है तो कमेन्ट के रूप में सामने रखे.

Tuesday, February 16, 2010

निमाड़ी व्यंजन - उख्हलपिंडी

निमाड़ पश्चिमी मध्य प्रदेश का वो हिस्सा है जहा से मै आता हु। ये हिस्सा अपनी भौगोलिक स्तिथि की वजह से काफी भिन्न है। एक तरफ से यह महाराष्ट्र के करीब है वही दूसरी तरफ से गुजरात के भी नजदीक है, इसीलिए यहाँ की संस्कृति में दोनों की झलक देखने को मिलती है, यही हाल यहाँ के व्यंजनों का भी है। आज मै जिस पकवान की बात कर रहा हु उसे उख्हलपिंडी कहती है। बहुत ही स्वादिश एवं ग्रामीण पकवान है। इसकी विधि भी बहुत सरल है।
सामग्री : १ व्यक्ति के लिए
आटा १ कटोरी
बेसन १/२ कटोरी
प्याज १ बड़ा
लाल मिर्ची स्वादानुसार
जीरा १ चम्मच
राइ १ चम्मच
पिसा धनिया १ चम्मच
नमक स्वादानुसार
निम्बू स्वादानुसार
हल्दी १/४ चम्मच
हरा धनिया
पानी १ कप
विधि :
सबसे पहले आटे और बेसन को मिला कर सेंक ले, फिर उसे अलग रख दे अब एक कड़ाई में तेल ले गरम होने पर राइ डाले तड़कने पर उसमे जीरा और कटे हुए प्याज डाले, सुनहरे होने तक पकाए फिर उसमे हल्दी, लाल मिर्च और धनिया डाले थोडा हिला कर उसमे बेसन और आटा मिला दे, धीरे धीरे थोडा पानी दल कर हिलाए, पानी बस इतना ही डाले जितने आटा थोडा गिला हो जाये ज्यादा डालेंगे तो पतला हो जायेगा अब बस नमक मिला दे, उख्हलपिंडी तैयार है, निम्बू और हरा धनिया दाल कर सर्वे करे। पूरा पकवान सिर्फ १५ मिनट में तैयार और स्वाद के तो क्या कहने..... आप भी ट्राई करे और अच्छा लगे तो दाद जरूर दीजियेगा।

Monday, February 15, 2010

Cinema par Excellence!! CASABLANCA (1942)

"Casablanca" opens on maps while a narrator gives a detailed exposition of the many twists and turns of Casablanca in the French Morocco, as a refugee route from wartime Europe...

Rick's Café is the point of intersection, the espionage center, the background for Allied offensive, the focal point as refugees from Nazi-occupied Europe seek to gain exit visas to Lisbon... The interesting club so well organized, leads to an open arena of conspiracy, counterspies, secret plans, black market transactions, in which the games and fights are between arrogant Nazis, patriotic French, idealists, murderers, pickpockets and gamblers around a roulette wheel, where a ball could rest on Rick's command against the settled number 22...

"Casablanca" is an adventure film which victory is not won with cannons and guns... The action, the fight, the war takes place inside Rick's walls rather than outside...

But who is this Rick? What is his magical power? His secret weapon? Rick is the anti-fascist with hard feelings, the former soldier of fortune who has grown tired of smuggling and fighting, and is now content to sit out the war in his own neutral territory... Even loyalty to a friend doesn't move him as he refuses to help Ugarte, a desperately frightened little courier who is fleeing from the police...

Emphatically, Rick says, "I stick my neck out for nobody." But we know he will do just that in a very short time, for into his quiet life comes a haunting vision from his past, the beautiful woman he still loves and bitterly remembers... She is married to an underground leader and she desperately needs those papers Rick conveniently now has in his possession... The cynical Rick's facade of neutrality begins to weaken as he recalls the bittersweet memories of his past love affair, memories triggered repeatedly when the strains of "As Time Goes By" come from Sam, his piano-playing confidante...

But "Casablanca" basic message is a declaration of self-sacrifice... War World II demanded all! The words stated by Rick at the airport had their impact: 'The problems of three people don't amount to a hill of beans in this crazy world.' It goes without saying that Bogart is incomparable when he seems most like himself... His way with a line makes "Casablanca" dialog part of the collective memory: 'I remember every detail. The Germans wore gray. You were blue.'

Ingrid Bergman is fascinating as the lovely heroine, the mysterious impossible woman of an impossible love, the tender mood of every man, the love-affair, the quality of being romantic, the traditional woman enclosed by two rivals, symbol of a besieged Europe...

The magic that developed from the teaming of Bogart and Bergman is enough to make a new romantic figure out of the former tough guy... To his cynicism, his own code of ethics, his hatred of the phoniness in all human behavior, he now added the softening traits of tenderness and compassion and a feeling of heroic commitment to a cause... They helped him complete the portrayal of the ideal man who all men wished to rival...

One can look at hundreds of films produced during this period without finding any whose composite pieces fall so perfectly into place..., the music score is inventive, the editing is concise and timed perfectly... Bogart's and Bergman's love scenes create a genuinely romantic aura, capturing a sensitivity between the two stars one would not have believed possible...

"Casablanca" though released in 1942 is still a masterpiece of entertainment, an outstanding motion picture, and must watch for every one.

Sunday, February 14, 2010

REVIEW 'THE NOTEBOOK'


Yesterday saw movie The Notebook, Its been a long time since I saw a romantic movie so just thought to play The Notebook. The movie starts when rich girl Allie (rachel mcadam) comes to beautiful town sea brook, North Carolina for summers to spend vacation with her family. A poor guy called Noah (Ryan Gosling) sees her and suddenly falls in love, then he just do anything to impress her and got her attention finally and they fell in love and spend entire summer together, this part of the movie reflects the teen age, tender love between them, they do any kind of crazy things and relish the company of each other, but then their background cames in front and they get separated, well what happened after that is full of drama, emotions, betrayal, romance, anger.
The most significant part of this movie is that you see the character grow by the time, and after some time everybody realise that their is difference between physical attraction and LOVE. At the end of the day when you are in love you just want to spend time with your loved one, no matter what, you just want to see her, just want to hold her and you just want to do things she likes, no matter she cares for that or not, in the movie when noah makes promise to build the dream house for allie, he finally makes it even when he knows that allie is in relationship with some one else, but it says that when you love some one set her free, if she is yours she will come back and if she doesn't then she was never yours, and allie finally comes.
The best part is when they get old and allie caught by a disease where she dont remember anything even then noah stays with her all the time and read her all their story, so that everyday even for some minutes when her memory comes back they can be together and love each other, what a great portrayal of true love, and without the great cinematography by robert fraisse the feel of the movie could not have come, he created the wonder with camera. I must say that those who are in love or want to be in love, this movie is treat to watch, ha you may have tears in your eyes in the end though.

Friday, February 12, 2010

Sweet Romantic Song by pankaj saraowgi

Love is in the air..... share this with your valentine

Tuesday, February 9, 2010

TECHNIQUES OF STUDY

Following are some techniques which I follow, may be useful for you as well. Techniques of Study....
1. Human mind can not remember words, it remembers visuals, so whenever you read something try to visualize it, it may take little time but after practice its easy.

2. Its a common thing that every one understand his own hand writing, and its easier to understand and remember our own hand writing, Rather than printed words because our writing is unique it does not resemble to any other thing, that is why always make notes in you writing and read it later on to recall.

3. Discussions help you understand thing better, so discuss with your mates.

4. Why for many maths is boring ?? actually at school level they only teach you the method of solving question and does not explain about logic, purpose and practicality of that, that's why its boring so human mind always tries to find logic behind everything, so whatever you want to understand find some logic or practical thing with that.

5. Its hard to remember words, but easy to voice, so very good technique is to record every thing in your own voice and listen to it later on, its wonderful.. try it.

6. To remember for a very long time its necessary that you recall it timely, without referring to anything.

Sunday, January 31, 2010

Review Ishquia

From the very beginning I am following Vishal Bhardwaj, and now I can say that apart from having creative skills, he possess very good sense of business as well. He never neglected the demand of today's youth, neither he under the influence of his own intellectual impression tried to be very correct all the time. He used his creativity in very open way which represent the non filmy presentation of every situation, and that clicks, Even in this film Abhishek Choubey (The director) who represent the same so called bhardwaj style which used to be style of parallel cinema earlier, (shyam benegal type) to reflect the poverty and miserablity, bhardwaj uses this style to express greed, humour, lust and you can use the word dark comedy for his films,
Ishquia is film about strong characters who are non-apologetic about their shrewdness, and vulgarity and they keep the story going by throwing dialogues which hits you like punches, bhardwaj is dialogue writer in this film. Bhopali Dialect in the film is used pretty well and twists in the film never lets you relax for even a minute. Nice different way of presenting a story and all the people who like grounded and earthy way of film screenplay should go and watch this movie. Arshad warsi is spontaneous and chilled out actor whereas naseer played the role so beautifully that some times you dont relalise that this is film. Vidya looked very seductive and it can be lesson for all the other aspiring actresses that in complete cloths one can look more sensuous.