आज दैनिक भास्कर के रविवारीय संस्करण में एक लेख पड़ा, जान कर हैरानी हुइ की, आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस वीवी राव ने न्यायपालिका में ई-गवर्नेस को लेकर पढ़े गए अपने पर्चे में जब यह धमाका किया कि देश के सभी छोटे-बड़े न्यायालयों में लगभग 3 करोड़ 12 लाख 8 हज़ार मामले लंबित पड़े हैं, तो सबके कान खड़े होना लाजिमी था।
राव ने यह आशंका भी ज़ाहिर की है कि जजों के मौजूदा संख्याबल के हिसाब से इन मामलों को निबटाने में भारतीय न्याय व्यवस्था को 320 वर्ष लग जाएंगे! इधर तीन माह के भीतर लंबित मामलों की सूची में 14 लाख प्रकरणों का इजाफ़ा हो गया है। आश्चर्य होता है ना .... अब आप ही बताइए जब न्याय व्यवस्था इतनी लाचार हो, तो उसका फायदा तो सभी उठाएंगे चाहे हमारे यहाँ के छुटभैये नेता हो या आतंकवाद के नए अवतार।
दिल्ली हाईकोर्ट की पिछली सालाना रपट कहती है कि यूपी का इलाहाबाद हाईकोर्ट अगर साल के 365 दिन रोजाना 8 घंटे काम करे, तो भी उसे अपने यहां लंबित 9,49,437 मामले निबटाने में 27 सालों से अधिक समय लग जाएगा। वह भी तब,जब इस बीच उसके सामने कोई नया मामला पेश न किया जाए।
डेविड हेडली से तो आप वाकिफ ही होंगे... उसने वारदात को अंजाम दिया भारत में, अमेरिका ने उसे गिरफ्तार किया, उस पर मुकदमा भी हुआ और फैसला भी हो गया और वही भारत में कसाब पर अभी तक पहले दौर की सुनवाई ही चल रही है और ना जाने कब तक चलती रहेगी, इंदिरा गाँधी के हत्यारों को सजा हुई पर कितने सालो बाद, बाबरी ढांचे का केस अभी तक जारी है, अफजल को फांसी देने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं, ऐसे ही अजहर मसूद को जेल में बंद रखा और इसी बीच उसके चेलो ने प्लेन हाइजैक कर उसे छुडा लिया... खुद हमारे मंत्री उसे छोड़ कर आये..., चंद बेगैरत लोगो के सामने पूरा भारतीय तंत्र नतमस्तक हो गया... कहा गई खुफिया एजेंसी, कहा हमारी काबिल सेना असलियत तो ये है भारत के अधिकतर नेताओ की रीड की हड्डी है ही नहीं... जो नेता पैदा होते है कॉलेज की गुंडा गर्दी से वो क्या ख़ाक देश चलाएंगे।
इस न्याय व्यवस्था के पुर्नौद्धर के लिए मेरे कुछ सुझाव:
१ पुराने केस पुराने तरह से निबटाये, अवं नए मामलो के लिए अलग से व्यवस्था बनाये जिसके लिए नए इंतजामो की जरूरत होगी, वहा प्रोटोकॉल हो, टाइम लिमिट हो, नए बंदोबस्त हो, नई प्रद्योगिकी हो।
२ हमारी न्याय प्रक्रिया को नए प्रारूप की जरूरत है, जो दो बातो को ध्यान रखे, पहला लोगो में न्याय व्यवस्था के प्रति डर हो अवं विश्वास भी हो।
३ मामलो का वर्गीकरण हो अवं उसका निबटारा एक ही तरह बेंच के द्वारा किया जाए, दुसरे शब्दों में एक बेंच को सरे तरह के मामले ना दिए जाये, बेशक इसके लिए हमें ज्यादा जजों की आवश्यकता होगी।
४ कंपनी मामले, आतंकवादी मामले, टैक्स मामले जल्द सुलझाये जाए क्योकि इनसे देश की साख अवं अर्थव्यवस्था जुडी होती है।
आशा है न्याय से जुड़े लोग मेरी बात को आगे पहुचाएंगे, अगर आपकी भी कुछ राय है तो कमेन्ट के रूप में सामने रखे.
3 comments:
आपके ब्लॉग पर आकर कुछ तसल्ली हुई.ठीक लिखते हो. सफ़र जारी रखें.पूरी तबीयत के साथ लिखते रहें.टिप्पणियों का इन्तजार नहीं करें.वे आयेगी तो अच्छा है.नहीं भी आये तो क्या.हमारा लिखा कभी तो रंग लाएगा. वैसे भी साहित्य अपने मन की खुशी के लिए भी होता रहा है.
चलता हु.फिर आउंगा.और ब्लोगों का भी सफ़र करके अपनी राय देते रहेंगे तो लोग आपको भी पढ़ते रहेंगे.
सादर,
माणिक
आकाशवाणी ,स्पिक मैके और अध्यापन से सीधा जुड़ाव साथ ही कई गैर सरकारी मंचों से अनौपचारिक जुड़ाव
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अपने ब्लॉग / वेबसाइट का मुफ्त में पंजीकरण हेतु यहाँ सफ़र करिएगा.
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हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
अनुराग जी,
आप तीसरा खंबा ब्लाग पर जाएंगे तो बहुत आलेख मिलेंगे। वास्तविकता तो यह है कि देश में जरूरत के केवल 20% अधीनस्थ न्यायालय हैं।
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